Wednesday, November 13, 2013

तौहीद - इस्लाम का एक अहम् जुज़

इस्लाम की बुन्याद मुख्यता तीन चीजों पर है -
1: तौहीद
2: रिसालत
3: आख़िरत
आपलोग जानते हैं की पहले नम्बर पर तौहीद है तो
आज इसी मौज़ू पर गुफ्तगू हो जाए

तौहीद ही वह वजह थी जिस पर कुफ्फार ए मक्का आप
सल्लo से लड़ा करते थे , एक बार अबू तालिब ने
अपनी आखिरी दिनों  में सर्दाराने कुरैश को बुलाया और
चाहा की आप सल्ल o में और इनमें सुलह हो जाए , तो
आप सल्लo ने कहा की मैं एक ऐसी बात बताऊँ की
जिसे अगर मान लोगे तो दुनिया भर की बादशाहत
तुम्हारे क़दमों में होगी , इस बात पर उन लोगों ने कहा
की हम ऐसी कई बातें मान सकते हैं , तो आप सल्लo ने
कहा की पढो "ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मद उर रसूलल्लाह " इस
बात पर कुरैश के सरदारों ने कहा की हम इसको हरगिज़ नहीं
मानेंगे ......
इस वाकिये से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं की इस कलमे
यानि तौहीद और रिसालत की कितनी अहमियत है !

तो तौहीद पर आते हैं इसका मतलब होता है "अल्लाह को
एक मानना " , यानि सिर्फ एक खुदा की इबादत करना
उसी से मदद मांगना , उसी के आगे सर झुकाना
और उसी को हाज़िर ओ नाज़िर जानकर अपने आमाल
करना |

तौहीद का तसव्वुर इन्सान को अपने अन्दर अच्छी तरह से
समझ लेना चाहिए क्योंकि अगर आप तौहीद के बारे में
ही शुकूक में मुब्तला हैं तो आप खुद को मुसलमान क्योंकर
समझते हैं ?

अब तौहीद के हिस्सों पर आते हैं -
तौहीद की तीन शाखें हैं -
1:तौहीद ए रुबूबियत
2:तौहीद ए उलूहियत
3:तौहीद ए अस्मा वास्सिफात

तौहीद ए रुबूबियत का मतलन है की सारी कायनात का
पैदा करने वाला और पालने वाला सिर्फ अल्लाह है ,
सारी कायनात में जितने भी काम होते हैं वह अल्लाह की
मर्ज़ी से होते हैं इसमें किसी और का कोई दखल नहीं होता ,
अगर कोई लाख जातां कर ले लेकिन अगर अल्लाह की
मर्ज़ी नहीं हुई तो वो काम नहीं हो सकता !

तौहीद ए उलूहियत का मतलब है कि सिर्फ अल्लाह से मांगना ,
सिर्फ एक अल्लाह की ही इबादत करना उर उसी के आगे
सर झुकाना , तौहीद ए रुबूबियत के इकरार के बाद इंसान पर लाजिम आता
है की वह तौहीद इ उलूहियत के तकाजों को पूरा करे , अगर वह ऐसा नहीं
करता तो वह अपने दावे में झुटा है ! कुरैश भी मानते थे
की अल्लाह ने ही सारी कायनात बने और उसका निज़ाम अल्लाह ही
चलता है लेकिन वह अल्लाह की इबादत के बजे शिर्क(अल्लाह
की साथ किसी और को शरीक करना)  किया
करते थे बस इसी लिए वह मुस्लमान नहीं कहलाते थे |

तौहीद ए अस्मावस्सिफआत का मतलब है की अल्लाह के  निन्यानवे नाम हैं
और उन नामों से अल्लाह को याद करना चाहिए जैसे या रहीम , या करीम
वगैरा   |

अल्लाह हम सब को तौहीद समझने और उसके तकाजे पुरी करने की तौफीक
अत फ़रमाएँ ....आमीन