स्त्रियाँ एक बार फिर अपने उत्पीड़न का कानून बनाने की जिम्मेदारी पुरुषों को दे रही हैं. पुरुष कानून भी बनायेंगे, बलात्कार भी करेंगे.एक दूसरी बात सहमति-असहमति से जुडी है. निश्चित तौर पर सहमति का मतलब स्त्री की सहमति है. कम उम्र की अवयस्क लड़कियां तो ईमानदारी से सहमति-असहमति की बात कुछ हद तक स्वीकार भी कर लेंगी, लेकिन स्त्रीवाद का नारा लगा रही वयस्क स्त्री इसका वैसे ही इस्तेमाल करेंगी जैसा पुरुष एमएमएस बनाकर करते हैं.
जरूरत एक ऐसा सिस्टम बनाने की है जिसमें विपरीत लिंगी एक दूसरे का सम्मान करना सीखें। विशेष-वाद और संरक्षण की अराजकता हमेशा अपराध को जन्म देती है. दरअसल सरकार ये दिखाना चाहती है हम स्त्रियों के साथ खड़े हैं. मत भूलिए, मणिपुर से कश्मीर तक हमारी सेना बलात्कार को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है और न सिर्फ सत्ता बल्कि फेसबुक से लेकर राजपथ तक ‘हमें बचाओ, हमें बचाओ’ चिल्ला रही स्त्रियों की एक पूरी भीड़ खामोश बैठी है. दरअसल सरकार ये दिखाना चाहती है हम स्त्रियों के साथ खड़े हैं.
ये कानून ,सरकार और समाज की जिम्मेदारी है कि वे स्त्री और पुरुष के बीच साम्यता को स्थापित करने में स्त्रियों की मदद करें. हमारे सामने समाज का एक संस्कारहीन हिस्सा भी मौजूद है. ऐसे में पैर छूने और हाँथ जोड़ना सिखाने से ज्यादा जरूरी है पहले अपने घर से ही लड़के और लड़कियों में भेद ख़त्म किया जाए और उन्हें इसके लिए तैयार किया जाए....!
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