Thursday, March 21, 2013

चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता

चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता। #3-7
कुरआन में इस बात का एलान है कि इसका कोई अंश नष्ट न हो सकेगा, कभी इसके शब्द आगे-पीछे न हो सकेंगे।
अनुवादः
''निस्सन्देह यह जिक्र अर्थात कुरआन हमीं ने उतारा है और हम निश्चय ही इसे सुरक्षित रखेंगे।’ - सुरः हिज्र 9
As for the Admonition, indeed it is We Who have revealed it and it is indeed We Who are its guardians. ( Quran: 15:9) 
بےشک یہ (کتاب) نصیحت ہمیں نے اُتاری ہے اور ہم ہی اس کے نگہبان ہیں (٩) 
‘यकीनन यह एक किताबे अज़ीज़ है। बातिल (असत्य) न इसके आगे से इसमें राह पा सकता है, न इसके पीछे से।'' - सूरः हाममीम सज्दा

‘किताबे अज़ीज़’ होने का अर्थ यह हुआ कि इसके वजूद को कभी होई हानि नहीं हो सकती, इस के सम्मान को कोई आघात नहीं पहुंचा सकता और इसका रूप और इस की हैसियत किसी भी परिवर्तन की पहुँच से परे है।
दुनिया कि हर किताब अपने मूल रूप में नहीं है सभी में इतने परिवर्तन हो चुके हैं कि कब क्या था यह जानना भी मुश्किल होगया। एकतरफ कुरआन है कि खुदा चैलेंज करता है कि इसमें कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता। सारी दुनिया मिल जाये हल्का सा फर्क अर्थात विभिन्नता करके दिखादे।
चोदह सौ से अधिक वर्षां से इस्लाम दुश्मन सब तरह की कोशिश करके देख चुके, नाकाम रहे। आज भी ज्यूँ का त्यूँ है। जैसाकि मुहम्मद स. को लगभग 23 साल में याद कराया गया था।

कुरआन के बारे में खुली दावत है छानबीन करें।

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