इस्लाम में औरत की हैसियत
इस्लाम ने औरत को ज़ुल्म व अत्याचार खड्डे से निकाल कर उसे सारे मानवीय अधिकार दिए, उसे सम्मान व श्रेष्ठता प्रदान की और समाज को उस का सम्मान करना सिखाया, जैसा के इस से पूर्व के समय में उसे प्राप्त नहीं था। वह भी ऐसे समय में जब औरत गुलामी की जिंदगी गुजार रही थी।
कुरआन ने पूरी शक्ती के साथ कहा: 'ऐ लोगो! अपने रब से डरो, जिसने तुम्हें एक जान से पैदा किया है। और उससे उस का जोडा ब...
नाया. अल्लाह से डरो जिसका वास्ता दे कर तुम एक दुसरे से अपने हक़ मांगते हो। और रिश्तों का सम्मान करो। निस्संदेह, अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा है।'
माँ के रूप में औरत की हैसियत- हमने आदेश दिया कि मेरे कृतज्ञ बनो और अपने माता -पिता के भी कृतज्ञ बनो। मेरी ही ओर तुम्हें पलटना है।
मुहम्मद (SA) का फरमान है
- अल्लाह ने तुम पर हराम ठहरायी है, माँ की नाफरमानी और लड़कियों को ज़िंदा दफ़न करना।
पत्नी के रूप में औरत-
उनके साथ भले तरीके से जीवन यापन करो।
हज़रत मुहम्मद (SA) इरशाद है -
ईमान वालों में सब से परिपूर्ण ईमान वाला आदमी वह है, जिस के अखलाक़ (व्यावहार) सब से अच्छा हो, और तुम में बेहतर वे लोग हैं जो अपनी औरतों के हक में बेहतर हों ।
बेटी के रूप में औरत -
मुहम्मद (SA) का इरशाद है -
अल्लाह त'आला जिस व्यक्ति को लड़कियों के द्वारा कुछ भी आजमाये, तो उसे चाहिए कि वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करे।ये लडकियां उस के लिए जहन्नम (नरक) से बचाव का साधन होंगी।हदीस (बुखारी शरीफ)
एक अन्य स्थान पे फरमाया - जिस व्यक्ति की लड़की हो, वोहन उस के साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार करे और न उस पर लड़के को प्राथमिकता दे, तो अल्लाह त'आला उसे जन्नत (स्वर्ग ) में प्रविष्ट कराएगा।
कुछ अन्य अधिकार -
मुहम्मद (SA) का फरमान है - 'बेवा व तलाक़ पायी हुयी औरत का निकाह नहीं किया जाएगा जब तक कि उस की राये न मालूम कर ली जाए, और अविवाहिता का निकाह नहीं होगा जब तक उस की अनुमति न ले ली जाए।'
जो कछ माँ-बाप और रिश्तेदार छोडें, चाहे वोह थोडा हो या ज्यादा, उस में मर्दों का हिस्सा और औरतों का भी हिस्सा है - एक निर्धारित हिस्सा
मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतें एक दूसरे के सहयोगी हैं - भलायी का हुक्म देते हैं और बुराई से रोकते हैं (कुरआन ९:७१)
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