ला इला - ह इल्लल्लाह का मतलब
सबसे पहले ये समझिए कि इलाह किसे कहते है। अरबी जबान मे इलाह के मानी है। इबादत के लायक यानी ऐसी हस्ती जो अपनी शान जलाल और बडाई के लिहाज से इस काबिल हौ कि उसकी परस्तिश और पुजा कि जाए और बन्दगी और इबादत मे उसके आगे सिर झुका दिया जाए इलाह के मानी यह मतलब भी शामिल है कि वह बडी कुदरत का मालिक हो जिसकी बडाई समझने मे इसान कि अक्ल हैरत रह जाए इलाह के मानी मे वह बात भी दाखिल है कि वह खुद किसी का मोहताज ना हौ और सब अपनी जिन्दगी के मामले मे उसके मोहताज हो और उस से मदद माँगने के लिए मजबुर हो इलाह के लफ्ज मे छिपे हुए के मानी भी पाए जाते है। यानी इलाह उसे कहेगे जिसकी ताकते राज से भरी और छिपी हूई हो फारसी मे खुदा और हिन्दी मे देवता और अंग्रेजी मे गोड के मानी भी इससे मिलते जुलते है। दुनिया कि दुसरी जबानो मे भी इस मतलब के लिए खास लफ्ज पाए जाते है।
लफ्ज अल्लाह असल मे खुदाए तआला का खास जाती नाम ( personal name ) है। इस तरह ला इला ह इल्लल्लाह का लफ्जी तर्जुमा यह होगा कोई इलाह नही है। सिवाए उस खास जात के जिसका नाम अल्लाह है। मतलब यह है। कि पुरी कायनात मे अल्लाह के सिवा कोई एक हस्ती भी ऐसी नही है। जो पुजने के लायक हो उसके सिवा कोई इसका हक नही रखता कि इबादत और बन्दगी और इताअत मे उसके आगे सिर झुकाया जाए सिर्फ वही एक जात सारे जहान का मालिक और हाकिम है। तमाम चीजे उसकी मोहताज है। सब उसी से मदद मागने पर मजबुर है उसकी जात हमारी समझ से परे है और उसकी हस्ती को समझने मे अक्ल दंग है। अल्लाह पर ईमान
हजरत मुहम्मद (सल्ल॰) कि सबसे पहली ओर सबसे ज्यादा अहम तालीम ये है
ला इला - ह इल्लल्लाह
(अल्लाह के सिवा कोई इलाही नही )
यह कलिमा इस्लाम कि बुनियाद है। जो चीज मुस्लिम को एक काफिर एक मुशरिक और एक दहरिये से अलग करती है वह यही है। इसी कलिमे के इकरार या इनकार से इंसान और इंसान मे बहुत बडा फर्क हो जाता है। इसको मानने वाले एक गिरोह बन जाते है। और ना मानने वाले दुसरे गिरोह इसके मानने वालो के लिए दुनिया से लेकर आखिरत तक तयक्की कामयाबी बुलन्दी और इज्जत है और ना मानने वालो के लिए नाकामी और जिल्लत और पस्ती
इतना बडा फर्क तो इसान और इसान के बीच हो जाता है यह कुछ लफ्जो मे बने हुए एक छोटे से जुमले को जबान से कह देने का नतीजा नही है। जबान से अगर आप दस लाख बार कुनैन कुनैन पुकारते रहे और खाए नही तो आपका बुखार नही उतरेगा इसी तरह अगर जबान से ला इला ह इल्लल्लाह कह दिया मगर यह ना समझे कि इसका मतलब क्या है और इन लफ्जो को कह कर आपने कितनी बडी चीज का इकरार किया है और इस इकरार से आप पर कितनी बडी जिम्मेदारी आ गई है तो इन लफ्जो के कहने का कोई फायदा नही असल मे फर्क तो उसी वक्त होगा जब ला इला ह इल्लल्लाह का मतलब आपके दिल मे उतर जाए और उसके मानी पर आपको पुरा यकिन हो जाए उसके खिलाफ जितने खयालात है उनसे आपका दिल बिल्कुल पाक हो जाए इस कलिमे का असर आपके दिल और दिमाग पर कम से कम इतना गहरा हो जितना इस बात का असर है। कि आग जलाने वाली चीज है और जहर मार डालने वाली चीज जिस तरह आग कि खासियत पर ईमान आपको चुल्हे मे हाथ डालने से रोकता है और जहर कि खासियत पर ईमान आपको जहर खाने से रोकता है। इसी तरह ला इला ह इल्लल्लाह पर ईमान आपको शिर्क और कुफ्र और दहरियत कि हर छोटी से छोटी बात पर भी रोक दे चाहे वह अकीदे की हो या अमल कि
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