Thursday, March 21, 2013

मृत्यु से किसी को मुक्ति नहीं

मृत्यु से किसी को मुक्ति नहीं:-
मानव हो या जिन्नात, जानवर हो या कोई और, कायनात में कोई निर्माण व प्राणि मृत्यु से छुटकारा नहीं पा सकता। प्रत्येक प्राणि के अस्थित्व अदम में, होने तथा ना होने में असमानता हुआ है तथा होता रहेगा। किन्तु मृत्यु व
ास्तव व सत्य होने तथा आने में किसी का कोई असहमति व मतभेद नहीं। इसको मानें वह तो आ कर ही रहेगी, जब इस के बिना कोई चारह नहीं तो सरकार पाक सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मृत्यु के विषय में सोंचने तथा चिन्ता करने का अंदाज़ बदल कर आदेश कियाः भाषांतरः जो व्यक्ति अल्लाह तआला से मिलना प्रिय रखे, अल्लाह तआला उसे अपनी रहमत व करुणा में रखना पसंद करता है। (सहीह बुखारी, हदीस संख्याः 6507) पूर्व काल व दौर में मृत्यु को एक भयानक जानव व संकटपूर्ण स्थिति का विचार किया जाता था। सरकार दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मोमिनों तथा आज्ञाकारी व आज्ञापालक को अल्लाह तआला की रहमत व करुणा का विश्वास दिलाया। सत्य में मृत्यु से अनुभव प्रदान की मृत्यु एक द्वार है जिस से गुज़र कर सेवक व बन्दा अपनो रब सत्य प्रियतम से मिलता है। आज्ञापालन व आज्ञापरता के द्वारा ये राह असान व सुगम बनाई जाए। अल्लाह तआला व धर्म के विरोधियों के लिए मृत्यु अत्यन्त कठिन कर्म है। मृत्यु का सिलसिला व लमहे मोमिन व आज्ञापालक के लिए सरल व सुगम होता है के नज़अ की स्थिति में प्रिय बन्दे को अल्लाह तआला की सन्तुष्टि की जब शुभ-सूचना मिलती है तथा इस के लक्षण उजागर होने लगते हैं तो जीवन से अधिक उसे मृत्यु प्रिय होती है। क्यों के अल्लाह तआला इस पर करुणा व कृपा, इनाम व एहसान की वर्षा प्रकट करता है। इस के विरुद्ध आज्ञालंघन व अतिक्रमण को मृत्यु के समय उनका बुरा परिणाम दिखाई दा है। इसी लिए वे मृत्यु से कतरे तथा उसे नापसंद करे हैं। अल्लाह तआला भी उन्हें अपनी रहमत व करुणा से दूर रखता तथा तलकीफ में व्यस्त करता है। इसी लिए हदीस पाक में आया हैः- भाषांतरः अल्लाह तआला से मिलने को जो पसंद ना करे उसे अल्लाह तआला रहमत व करुणा से दूर रखता है। (सहीह बुखारी, हदीस संख्याः 6507)

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