गज़ा एक छोटी सी जगह है. लगभग 41 किलोमीटर लंबी और छह से 14 किलोमीटर तक चौड़ी. वहां लगभग 15 लाख लोग रहते हैं. 2005 से पहले गज़ा के 40 प्रतिशत क्षेत्रफल में इसराइली बस्तियां थीं.
उनमें सिर्फ 5000-6000 इसराइली रहते थे थे जबकि बाकी आधे हिस्से में पंद्रह लाख फलस्तीनी लोग बसे थे.
अब गज़ा तीन तरफ से सील किया हुआ है. इसराइल, और यहां तक कि मिस्र ने भी उसके जमीन, समुद्र और आकाश पर बंदिश लगा रखी है. आप न कहीं
जा सकते हैं और न ही कुछ कर सकते हैं.
2009 के युद्ध से पहले गज़ा में थोड़ी बहुत खेती होती थी और कुछ उद्योग होते थे, जो सब्जियां, स्ट्रॉबैरी, फूल उगाते और फर्नीचर बनाते और उन्हें निर्यात करते थे. लेकिन युद्ध के बाद 95 प्रतिशत निजी उद्योगों को बंद कर दिया गया.
आज गज़ा अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए इसराइल पर निर्भर है. वो भी सिर्फ इकलौती खुली चौकी किर्म शालोम से होती है. बाकी आपूर्ति मिस्र से सुरंगों के जरिए होती है.
घेराबंदी, रोक, हमले, गोलाबारी और जेल जैसे हालात में रहने की भावना से लोगों में गुस्सा और नफरत बढ़ती है और इससे कट्टरपंथ हो हवा मिलती है. इसी से युवा पीढ़ी की सोच को आकार मिलता है.
मैं नहीं समझता कि ये पीढ़ी राजनीतिक बनेगी- गज़ा के सभी लोग अब राजनीतिक नहीं है और उनमें से बहुत से लोग न तो हमास का समर्थन करते हैं और न फतह का, भले वे ऐसा खुल कर नहीं कह पाते हों.
लेकिन मैं जिन युवाओं को जानता हूं वो अपने आसपास खून को छीटों को देख देख कर बड़े हुए हैं. वे नहीं जानते हैं कि सामान्य जिंदगी क्या होती है...!!
~हमादा अबु कमर (बीबीसी ग़जा संवाददाता)
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