कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो यह
रख दे कोई ज़रा सी खाके वतन कफ़न में|..............."अमर शहीद अशफाकुल्ला खान"
आजादी के इन ६५ वर्षो मै हम कहा से कहा आ गए, आजादी की लड़ाई मै कंधे से कन्धा मिलकर चलने वाले वो मुसलमान , जिनके बिना आजादी की लड़ाई अधूरी थी. जिनके दिलो मे भारत माँ के लिए इतना प्यार की मरने के बाद भी कफ़न मे वतन की मिटटी की चाहत.
राजनीती से ऐसे लोगो को वाहर करना होगा जो धरम , जात पात की राजनीती करते है. क्योकि दंगो मे उनका कोई सगा नहीं मरता, मरता तो एक आम भारतीय है. और उन्हें राजनीती करने का अवसर मिल जाता है. हिन्दू हो या मुस्लमान हमें अपने अपने विवेक से काम लेना होगा. पुरानी, इतिहास की बातो को दिल से निकाल कर भाईचारे का वातावरण बनाने मे एक दुसरे की मदद करे. नफरत फेलाने से कुछ हासिल नहीं होगा.
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