Wednesday, March 20, 2013

इस्लाम मे गैर-मुसलमानों से युद्ध करने की बात ?

इस्लाम मे गैर-मुसलमानों से युद्ध करने की बात ? 

इस्लाम के बारे में झूठा प्रचार किया जाता है कि कुरआन में अल्लाह के आदेशों के कारण ही मुसलमान लोग गैर-मुसलमानों का जीना हराम कर देते है, जबकि इस्लाम मे कही भी निर्दोषों से लड़ने की इजाजत नही हैं !

देखिए इस्लाम क्या कहता है इस बारे में ?


जिन लोगों से युद्ध करने की बात कुरआन मे कही गर्इ हैं वह उनके गैर-मुस्लिम होने के कारण नही, बल्कि इस कारण कही गर्इ हैं। कि वे इस्लाम और उसके अनुयायियों पर घोर अत्याचार करते थें उन्हें खत्म करने के लिए साजिशे करते थे, मुसलमानो पर खुद बढ़-चढ़ कर हमले करते थे, और मुसलमानों को इस्लाम पर अमल करने से रोकते थे,

इस्लाम मे कही भी निर्दोषों से लड़ने की इजाजत नही हैं, भले ही वे काफिर या मुशरिक या दुश्मन ही क्यो न हों। विशेष रूप से देखिए अल्लाह के ये आदेश:

‘‘जिन लोगों ने तुमसे दीन (धर्म) के बारे में जंग नही की और न तुम को तुम्हारे घरो से निकाला, उनके साथ भलार्इ और इंसाफ का सुलूक करने से खुदा तुमको मना नही करता। खुदा तो इंसाफ करने वालों को दोस्त रखता हैं। ‘‘ (कुरआन, सूरा-60, आयत-8)

‘‘खुदा उन्ही लोगो के साथ तुमको दोस्ती करने से मना करता हैं, जिन्होने तुम से दीन के बारे मे लड़ार्इ की और तुमको तुम्हारे घरो से निकाला और तुम्हारी निकालने मे औरो की मदद की, तो जो लोग ऐसों से दोस्ती करेंगे, वही जालिम हैं।’’ (कुरआन, सूरा-60, आयत-9)

‘‘और जो लोग तुमसे लड़ते हैं, तुम भी खुदा की राह मे उनसे लड़ो, मगर ज्यादती (अत्याचार) न करना कि खुदा ज्यादती करनेवालो को दोस्त नही रखता।’’(कुरआन, सूरा-2, आयत-190)
धर्म ग्रहण करने के सम्बन्ध मे कुरआन इस मूल सिद्धान्त की घोषणा करता हैं:

‘‘धर्म के सम्बन्ध मे कोर्इ जबरदस्ती नही।’’ (कुरआन, 2 : 256)

कुरआन मे एक अन्य जगह है:

(ऐ पैगम्बर) अपने प्रभु की ओर से (लोगो के सामने) सत्य पेश कर दो। अब जो चाहे उसे माने और जो चाहे इन्कार करे।’’ (कुरआन, 18:29)

कुरआन मे एक अन्य जगह कहा गया :

‘‘(ऐ पैगम्बर) तुम्हारे प्रभु की ओर से जो मार्गदर्शन तुम्हें दिया गया हैं।

मुश्रिकों (बहुदेववादियों) से न उलझो-(याद रखो कि) अगर परमेश्वर चाहता तो वे शिर्क न कर सकते थे-और हमने तुम्हें इन (बहुदेववादियों) पर कोर्इ दारोगा नही बनाया हैं और न तुम उनपर कोर्इ वकील बनाए गए हों।’’ (कुरआन, 6 : 106-107)

‘‘हमने उसको (मनुष्य को) सत्यमार्ग दिखा दिया हैं। अब चाहे वह (उसपर चलकर) कृतज्ञ बने, चाहे (उसे छोड़कर) अकृतज्ञ।’’ (कुरआन 76 : 3)

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