Thursday, March 21, 2013

"शाकाहार में मासाहार से अरबो गुना जीव -हत्या "

!!.."शाकाहार में मासाहार से अरबो गुना जीव -हत्या "..!!

चलिए हिंसा के बाद अब जीव हत्या की बात करते है ।हत्या पर भी हिंसा वाला सिद्धांत लागु होगा । जीवन और मृत्यु का चक्र उसी ईश्वर ने रखा है ।हर जीव को एक दिन मृत्यु आनी है ,अगर उसके कानून के मुताबिक जान जा रही है तो वो हिंसा नहीं है ,क्यों की वो नियम ही ईश्वर ने बनाया है ।
यदि जीव को खाने के लिए मारने को जीव हत्या कहे तो धर्म तथा विज्ञानं दोनों के अनुसार हर पेड़ पौधा व वनस्पति जीव होता है और सब से अधिक जीव हत्या खेती में होती है ।

मिटटी को उपजाऊ बनाने में और मिटटी को समतल करने में भी करोडो सूक्ष्म जीवो की हत्या होती है, खाद डालने से कीट नाशक दवाओ का प्रयोग करने से बड़ी संख्या में सूक्ष्म जीवो की हत्या होती है, बात यही तक सीमित नहीं बल्कि खेती की तमाम प्रक्रियाओ से गुजरते हुए जो फसल काटी जाती है वो भी जीव हत्या है ।एक एकड़ जमीं से फसल लेने के लिये कई करोडो जीवो की हत्या होती है सब मिल कर वर्ष भर में भी इतने जानवरों की हत्या नहीं होती ।विरोधियो के अनुसार विश्व में एक साल में करोडो जानवर खाने के लिये काटे जाते है परन्तु एक फसल लेने के लिये खरबों से भी जादा जीव हत्या होती है ।

विचारनीय बात ये है की पुरे विश्व में पशु काटते है वो खाने के लिये काटते है ।और बाग़ में फसल प्राप्त कर ने के लिये खाने से पहेले ही खरबों की संख्या में जीव हत्या करदेते है ।
इस प्रकार कहे सकते है की "largest killing industry in Agriculture" खेती करना संसार का सबसे बड़ा हत्या -उध्योग है "
हमें तय करना पड़ेगा की वह लोग खुद को शाकाहारी कहेते है क्या वह किसी जीव की हत्या नहीं करते ?कोई मनुष्य बिना जीव हत्या के धरती पर रहे सकता है ?

जब खाद्य पदार्थ सभी जीव की श्रेणी में आते है जैसे की गाजर मुली गेहू चावल गाय भैस बकरे बैल इत्यादि इत्यादि काटना हत्या है तो और जो इसे न खाना चाहे तो वो पत्थर मिटटी खाए । लेकिन ये सब को पता है के ये सम्भव ही नहीं की मनुष्य निर्जीव खाए ।इन्सान को जिसने बनाया है उसने हमें ऐसा ही बनाया है की हम सिर्फ जीव खाए ।अब एक बात तो सिद्ध है की मनुष्य सिर्फ और सिर्फ जीव खाता है निर्जीव खा ही नहीं सकता ,और संसार में कोई व्यक्ति ऐसा नहीं जो खाने के लिये जीव हत्या नहीं करता ....

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