रहमान अपने बन्दों पर कितना मेहरबान है, उनसे कितनी मुहब्बत करता है इसका अंदाज़ा नहीं किया जा सकता. खुदा ने अपने बंदे को अपने कहर-ओ-गज़ब से बचाने के लिए लाखों पैगम्बर भेजे कि बंदा खुदा से किये अपने वादे को याद करे. और सबसे बड़ी इनायत सबसे बड़ा करम अपने हबीब को रहमतुल्लिलआलमीन बना कर बन्दों के पास भेज दिया, उसके बाद भी उसने तमाम वलियों को हिदायत के लिए भेजा, लेकिन वाकई इन्सान नाशुक्रा है, अपने रब के इतने ईनाम-ओ-इकराम के बाद भी गुमराह हुए फिरता है.. बेशक मेरे रब तेरी अताओं की कोई इन्तहा नहीं..इन्तहा तो क्या उनके शुमार का भी तसव्वुर नहीं..
बेशक -- तू रहीम है, तू करीम है, तू ही रहमान है.. तेरे हम पर बेशुमार एहसान हैं.. ======= वोह बख्शता है गुनाह-ए-अज़ीम भी लेकिन, हमारी छोटी सी नेकी भी संभाल रखता है ! हम उसे रौशनी में भी भूल जाते हैं लेकिन, वोह तारीकियों में भी हमारा ख्याल रखता है ! घरों में जिनके नहीं हैं दीये जलाने को, उनके लिए, फिज़ा में चाँद सितारे उछाल रखता है ! उसकी रहमतों का करूँ शुक्र कैसे अदा, जो हर वक्त मुझ नाचीज़ का ख्याल रखता है !
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