मस्जिद में लोगों को बुलाने के लिए अज़ान दीजाती है। अज़ान का भावार्थ है ‘पुकारना याघोषणा करना ।
हिंदी और अंग्रेज़ी में बहुत सी वेबसाईट्स पर अज़ान के बारे में जानकारी दी गई है। इंटरनेट के ज़रिये ज्ञान और सूचना का एक महाविस्फ़ोट हो चुका है लेकिन कुछ लोग फिर भी बहरे बने हुए हैं। ये आज भी अज़ान पर ऐतराज़ करते हुए मिल जाते हैं।
कोई पूछता है कि अज़ान में अल्लाह के साथ अकबर बादशाह को क्यों पुकारा जाता है ?
कोई एक दोहा बताकर अज़ान पर ऐतराज़ करता है-
कंकर पत्थर जोरि के मस्जिद लई चिनाय।
ता मुल्ला चढ़ि बाँग दईका बहरो भयो खुदाय।।
कबीर साहित्य पर रिसर्च करने वाले विद्वानों ने बताया है कि यह दोहा कबीर दास जी का नहीं है। इस दोहे के फ़र्ज़ी होने के बावजूद जाने क्यों इसे आचार्य हज़ारी प्रसाद दिवेदी जी ने अपनी ‘कबीर वाणी‘ में संकलित कर दिया और फिर शिक्षाविदों ने इसे हमारे स्कूली सिलेबस का हिस्सा बना दिया। इसतरह जिन स्कूलों से ज्ञान फैलना चाहिए था, वहां से जहालत फैल रही है।
जहालत का आलम यह है कि हिंदी ब्लॉग जगत में इसदोहे को दोहराने वाले आज भी मिल जाते हैं।
अब समय आ गया है कि आप और हमसब मिलकर इस समाज से जहालत का ख़ात्मा करें। इसके लिए अज़ान के बोल और उनके अर्थ को जानना ज़रूरी है।
अज़ान एक अजन्मे परमेश्वर की भक्ति और उपासना के लिए बुलावा है। यह बुलावा केवल मुसलमानों के लिए ही नहीं है बल्कि हरेक इंसान के लिए है, आपके लिए भी है। आपको भी मस्जिद में आना चाहिए, आपको भी मस्जिद में आनाहोगा। यह एक प्रेमपूर्ण बुलावा है। बुलाने वाले की आवाज़ इंसानी है लेकिन संदेश-आदेश उस पैदा करने वाले पालनहार प्रभु परमेश्वर का ही है। इसीलिए हरेक को उसके सामने शीश नवाना है, कोई पहले नवाएगा और कोई ज़रा बाद में नवाएगा
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/BUNIYAD/entry/azan
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