"वल अर्द बादिका दहाहा" सूर: नाज़ियात 79 : 30
प्रथ्वी
अल्लाह ने कुरान में पहले ही कह दिया:
"वल अर्द बादिका दहाहा" सूर: नाज़ियात 79 : 30
यानी कि, प्रथ्वी को अंडे की तरह बनाया
आप ये जानते होंगे की हमारी प्रथ्वी पूरी तरह से गोल नहीं है थोड़ी सी चपटी है
इस छोटी सी आयत मैं बहुत कुछ छुपा है ये हमारी समझ के उपर है कि हम कितना समझ पाते हैं!
पृथ्वी के रूप में एक बड़े क्षेत्र पर फैल सकता है. आसानी से एक कालीन के साथ पृथ्वी के एक विशाल मॉडल को ढक कर देखा जा सकता है.
"He Who has made for you the earth like a carpet spread out; has enabled you to go about therein by roads (and channels)...." The Holy Qur'an, Chapter 20, Verse 53.
वही है जिसने तुम्हारे लिए धरती को पलना (बिछौना) बनाया और उसमें तुम्हारे लिए रास्ते निकाले और आकाश से पानी उतरा. फिर हमने उसके द्वारा विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे निकाले [20:53].
कालीन आम तौर पर एक ऐसी सतह पर पर डाला जाता है, जो चलने पर बहुत आरामदायक नहीं होती है. पवित्र कुरआन तार्किक इस प्रकार है क्योंकि यह एक कालीन के रूप में पृथ्वी की पपड़ी का वर्णन करता है, जिसके नीचे गर्म तरल पदार्थ हैं एवं जिसके बिना मनुष्य के लिए प्रतिकूल वातावरण में जीवित रहना सक्षम नहीं होता. यह भूवैज्ञानिकों द्वारा सदियों की खोज के बाद उल्लेख किया गया एक वैज्ञानिक तथ्य है.
इसी तरह, कुरआन के कई श्लोक कहते है कि पृथ्वी को फैलाया गया है.
"And We have spread out the (spacious) earth: how excellently We do spread out!" The Holy Qur'an, Chapter 51, Verse 48
और धरती को हमने बिछाया, तो हम क्या ही खूब बिछाने वाले हैं. [51:48]
"Have We not made the earth as a wide expanse. And the mountains as pegs?" The Holy Qur'an, Chapter 78, Verse 6-7
क्या ऐसा नहीं है कि हमने धरती को बिछौना बनाया और पहाडो को खूंटे? [78:6-7]
पृथ्वी विशाल है और पृथ्वी के इस फैलाव वाले स्वाभाव का कारण उल्लेख करते हुए शानदार कुरान कहता हैं:
"O My servants who believe! truly. spacious is My Earth: therefore serve ye Me –(And Me alone)!" The Holy Qur'an, Chapter 29, Verse 56.
ऐ मेरे बन्दों, जो ईमान लाए हो! निसंदेह मेरी धरती विशाल है, अत: तुम मेरी ही बंदगी करो. [29:56]
इसलिए कोई भी यह बहाना नहीं दे सकेगा कि वह परिवेश और परिस्थितियों की वजह से अच्छे कर्म नहीं सका और बुराई करने पर मजबूर हुआ था.
काबा का निर्माण
एक रोज इब्राहीम अलैहिस्सलाम मक्का आए तो अपने पुत्र इस्माईल अलैहिस्सलाम से कहा कि अल्लाह ने मुझे हुक्म दिया है कि इस जगह एक घर बनाऊँ, इस्माईल अलैहिस्सलाम ने कहा कि आप के रब ने जो हुक्म दिया है उसे कर डालिए फिर दोनों ने मिल कर अल्लाह के घर खाना काबा का निर्माण किया इस्माईल अलैहिस्सलाम पत्थर ढो कर लाते और इब्राहीम अलैहिस्सलाम उन्हें जोड़ते , जब इमारत उँची हो गई तो इस्माईल अलैहिस्सलाम ने एक पत्थर ला कर उन के पैरॉ के नीचे रख दिया और इब्राहीम अलैहिस्सलाम उस पर खड़े हो कर काबा का निर्माण करने लगे वो पत्थर जिस पर चढ़ कर इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने काबा का निर्माण किया था काबा की दीवार के नीचे रह गया ,उस पर इब्राहीम अलैहिस्सलाम के पैरो के निशान भी रह गये जिसका नाम अल्लाह ने " मक़ामे इब्राहीम " रख दिया, काबा के निर्माण के बाद उन्होंने अल्लाह से निम्न प्रार्थना की
१- इस घर को उनकी तरफ से क़बूल कर ले
२- दोनों इस्लाम धर्म पर बाक़ी रहें
३- इस्लाम धर्म पर ही उनकी मौत हो
४- उनके बाद उनकी औलाद इस घर क़ी वारिस बने
५- इस दावते तौहीद (केवल एक अल्लाह क़ी पूजा) को सारे संसार में फैला दे
६- उन क़ी औलाद में एक नबी (दूत) भेजे
७- अपनी पूजा एवम् इबादत का सही तरीक़ा एवम् विधि सीखा दे
८- उन्हें क्षमा दे दे
९- काबा को सुरक्षा एवम् शांति वाला स्थान बनाए
१०- उनकी औलाद को बुतपरस्ती (मूर्ती पूजा) से बचाए
११- एवम् उन्हें विभिन्न प्रकार के फलों से आजीविका प्रदान करे
फिर इब्राहीम अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने हुक्म दिया कि लोगों में हज का एलान कर दें सो उन्होंने एलान कर दिया और लोग उनकी आवाज़ सुन कर पूरी दुनिया से लोग हज करने के लीए आने लगे जिस का सिलसिला आज तक जारी है और शायद क़यामत तक जारी रहे
इसके बाद इब्राहीम अलैहिस्सलाम शाम देश को लौट गए और सत्य धर्म के परचार में लग गये यहाँ तक कि एक सौ पचहत्तर वर्ष कि आयु में उनका देहांत हो गया
देहांत के समय उनके दो पुत्र इसहाक़ अलैहिस्सलाम और इस्माईल अलैहिस्सलाम थे इसहाक़ अलैहिस्सलाम शाम में ही रह गए और उन्होंने फ़लस्तीन में मस्जीदे अक़्सा का निर्माण किया बाद में मुहम्मद सललाल्लाहो अलैहै वसल्लम को छोड़ कर जीतने भी नबी और दूत आए उन्हीं कि नस्ल में आए और मुहम्मद सललाल्लाहो अलैहै वसल्लम उनके दूसरे एवम् बड़े पुत्र इस्माईल अलैहिस्सलाम कि नस्ल में आए.
इस्माईल अलैहिस्सलाम मक्का में काबा के पड़ोस ही में क़बीला जुरहूम कि एक लड़की से विवाह करके उनके साथ बस गए और फिर अल्लाह ने उनको , उनका और यमन वालों का नबी बना दिया. एक सौ सैंतीस वर्ष कि आयु में मक्का ही में उनका देहांत हो गया इस्माईल अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने बारह बेटे दिए जिन में नाबीत एवम् कैज़ार माशहूर हुए तथा कैज़ार की औलाद में अदनान हुए अदनान के दो बेटे हुए अक तथा मअद , अक यमन चला गया और मअद मक्का में ही रहा जिन की नस्ल से मुहम्मद सललाल्लाहो अलैहै वसल्लम हैं!
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