मकसद एक तो फिर रास्ते अगल क्यों ?
आतंकवाद के नाम पर होने वाली फर्जी गिरफ्तारियों के सिलसिले में मुस्लिम संगठनों की तरफ से आये दिन आवाज उठाई जा रहीं हैं। रिहाई मंच सहित कई मुस्लिम संगठन इस आवाज को जोर शोर से उठा रहे हैं। और उठानी भी चाहिये क्योंकि ये सामाजिक न्याय का मामला है। मगर कितना अच्छा होता अगर इसे मुस्लिम संगठनों के साथ - साथ हिंदू संगठन भी सामाजिक न्याय के इस मामले में कदम से कदम मिलाते। खैर.... जो मुस्लिम संगठन इस आवाज को उठा रहे हैं चाहे वो जामा मस्जिद से अहमद बुखारी हों या फतेहपुरी मस्जिद मुफ्ती मुकर्रम साहब, चाहे जमीयत ऐ उलमा हिंद से मौलाना महमूद मदनी या अरशद मदनी जमाअत ऐ इस्लामी हिंद से मौलाना जलालुद्दीन उमरी हों ये सारे दानिश्वर एक साथ एक प्लेटफार्म पर आकर अगर इस जंग को लड़ें तो बेहतर होगा। ठीक उसी तरह की एकता दिखानी होगी जैसी पिछले दिनों भाजपा ने दिखाई थी सुशील कुमार शिंदे के खिलाफ और उन्हें एकता का डर दिखाकर माफी मंगवाई। मगर किसी भी पत्रकार ने सुशील कुमार शिंदे से या कांग्रेस से ये मालूम करना जरूरी भी नहीं समझा कि अगर बयान गलत था तो जारी क्यों किया ? और अगर सही था तो माफी किसलिये मांगी ? आपको याद होगा कि ये वही मीडिया है जो किसी भी बम धमाके की पोल धमाका होने से पहले ही खोल देती है। धमाका बाद में होता है पहले उसके मास्टर माईंडों के हर कोई स्केच जारी कर देती है। मगर गृहमंत्री जो भारत के गृहमंत्री हैं न कि कांग्रेस के उनसे ये सवाल तक पूछना भी जरूरी नहीं समझती क्या संघी आतंकवाद पर बयान देने की वजह से हेमंत करकरे की तरह जान का खतरा तो नहीं है ? और जब आपके पास सबूत थे आपने बजाय कार्रावाई करने के माफी क्यों मांगी ? बात हो रही थी जेलों में बंद बेकसूर मुस्लिम नौजवानों की रिहाई की जिसके सिलसिले में सपा सुप्रिमो मुलायम सिंह यादव ने इतना बड़ा झूठ बोल दिया जितना की हिमालय का अस्तित्तव और बेशर्मी से कह दिया कि उनकी हकूमत ने अब तक 400 बेकसूर नौजवानों को रिहा किया है। कैसा भौंडा मजाक है ये कि जेल में यूपी की जेलों में बंद मुस्लिम नौजवानों की संख्या 50 भी नहीं है और मुलायम कह रहे हैं कि 400 कि रिहा कर दिया कैसे ? जबकि रिहाई की संख्या दहाई को भी नहीं छू पाई। उत्तर प्रदेश की जेलों में 22 नौजवान बंद हैं जिन पर आतंकवादी होने का कोई आरोप अभी तक सिद्ध नहीं हुआ हैं। और उत्तर प्रदेश से बाहर दूसरे राज्य की जेलों में उत्तर प्रदेश के 20 नौजवान बंद हैं। इसके अलावा इसके अलावा 8 नौजवान जो आजमगढ़ के हैं 2008 से लापता हैं जिनकी ये भी खबर नहीं है कि जिंदा हैं या उन्हें सरकारी मशीनरी ने ठिकाने लगा दिया है। और इसके अलावा भी दो नौजवान जो जम्मू और कश्मीर के थे उन्हें अलीगढ़ से गिरफ्तार किया था वो कश्मीर की जेल में बंद हैं। इनके अलावा तीन नौजवान जिनमें से एक फैसल उस्मानी की पुलिस हिरासत में हो गई थी जबकि दो आतिफ और साजिद का 2008 में बटला हाऊस में फर्जी एनकाउंटर किया जा चुका है। अगर इनमें से केवल दो संख्या कम कर दें जो जम्मू और कश्मीर की हैं तो बाकी को मिलाकर भी 50 नहीं होते तो मुलायम सिंह ने कौनसे गणित से इसे 400 बताकर एलान किया ? जबकि यहां जरूरत तो निमेष आयोग की रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने की थी जिसको इनके शहजादे वाली सपा सरकार दबाये बैठी है मीडिया में रिपोर्ट लीक हो जाने पर भी उस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है एसा क्यों है ? ये तो वह समाजवाद और मुस्लिम प्रेम नहीं हुआ जिसकी दुहाई देते – देते आपको बुढ़ापा आ गया ? जेल में बंद बेकसूर नौजवानों की लड़ाई लड़ने वाली तंजमीमों को अब चाहिये कि वे निमेष आयोग की सिफारिशों को लागू कराने के लिये सरकार पर दबाव बनायें। और ये लड़ाई मिलकर लड़ें और सरकारी मशीनरी को बतायें कि भारत के मुसलमान अनपढ़ हैं मजदूर है मजबूर हैं शहर की उन बस्तियों में रहते हैं जहां पर सड़कें नहीं हैं, पानी की निकासी के साधन नहीं हैं, सरकारी सेवाऐं नहीं हैं, वो पिछड़े हैं दलितों से भी ज्यादा ( एसा सच्चर कमेटी की रिपोर्ट कहती है ) मगर वे आतंकवादी नहीं हैं वे बेकसूर अपने नामों की सजा पा रहे हैं। उन्हें जल्द से जल्द रिहा किया जाये सरकारी मशीनरी के इस अन्नयाय के खिलाफ प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष जस्टिस मार्केंडू काट्जू भी आवाज उठा रहे हैं। हमारी उन्हें भी सलाह है कि वे भी उत्तर प्रदेश सरकार पर दबाव बनायें कि निमेष आयोग की रिपोर्ट को जल्द जल्द लागू किया जाये। फिर एक इंक्लाब देखने को मिलेगा.... बकौल मुनव्वर राना .......
खामोशी कब चीख बन जाये किसे मालूम है
जुल्म कर लो जब तलक ये बेजुबानी और है।
वसीम अकरम त्यागी युवा पत्रकार हैं और मुस्लिम मसायल पर जमकर लिखते हैं उनसे 9716428646 पर संपर्क किया जा सकता है
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