अंतिम अवतार
आज तक अंतिम या कलियुग का अवतार होने का दावा अनेक व्यक्तियों ने किया है। ऐसे अवतार के दावेदारों में से कुछ का उल्लेख निम्नलिखित है।
1. प्रथम उल्लेख में एक निष्कलंकी दल नाम में एक संस्था है। इसके संस्थापक बालमुकुन्दजी कहे जाते हैं। वह भारत के निवासी हैं, उनके अनुयायी उनके अवतार होने की प्रतिक्षा में हैं।
2. ठाकुर दयानन्द का ‘‘अरूणा चल मिशन’’ यह मिशन आसाम राज्य के सिलचर नामक स्थान में 1909 में स्थापित किया गया था। उन्होंने स्वयं तो अवतार होने का दावा नहीं किया किन्तु अनुयायी गणों ने माना, वह मिशन आज भी चल रहा है।
3. मात आनन्दमयी - इनको हजारों लोग आदि शक्ति जगदम्बा का अवतार मानते हैं।
4. मध्य प्रदेश वर्धा के सत्य समाज के संचालक स्वामी सत्य भक्त जी अवतार बन गये थे।
5. ब्रह्मकुमारियों के दादा गुरू-दादा लेखराज जिनका पूर्व नाम खूब चंद्रकृपलानी था। 1937 में आम मण्डली नाम की संस्था की स्थापना की। उन्होंने स्वयं ही ब्रह्मा विष्णु आदि होने का दावा किय था।
6. कृष्णानन्द जी दादा धुनी वाले ने अपने आपको शंकर जी का अवतार कहा था।
7. स्वामी प्रणवानन्द जी भी अवतार बन बैठे थे।
8. हंसावतार - इनके समन्ध में इनके प्रचारकों का कहना है कि जो त्रोता में राम, द्वापर में कृष्ण, वही भगवान अब हंसावतर है। (कल्कि पुराण भूमिका से)
अन्य और दावा करने वाले
9. आनन्द मार्ग करने वाले
10. अखिल ब्रह्माण्ड पति
11. सत् संघ आश्रम श्री अनुकूल चंद्र ठाकुर
थोड़ा आगे देखें तो-
12. सीता राम ओंकार नाथ,
13. श्री राम कृष्ण परमहंस देव ठाकुर।
14. श्री लोक नाथ ब्रह्मचारी।
15. बालक ब्रह्मचारी, आदि को लेकर अवतार मानते थे।
16. ऐतिहासिक रूप से समाज में प्रेम-भक्ति का जो विचार लाया था उनका नाम श्री कृष्ण चैतन्य था, आज तक वैष्णव सम्प्रदाय उनके ही कलियुग का अवतार मानता है। इनका पूर्व नाम निमाइमिश्र, पिता जगन्नाथ मिश्र, माता शची देवी, जन्म स्थान बंगाल के नदीया जिले में।
वर्तमान समय में नकली अवतारों की संख्या बहुत है।
नकली अवतार का दावा करने वाले केवल कलि युग में ही नहीं द्वापर युग में भी अवतार का दावा करनेवाले भी थे। (देखें भागवत पु. - 10/66/अ.)
ऊपर कहे गये तमाम दावेदार झूठे अवतार हैं, यह कहने के लिए विचार का प्रयोजन नहीं है।
अंतिम अवतार हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम ही हैं। अंतिम अवतार धारणाएं एवं समानताए:
1.नामगत साम्य: पुराणों में कल्की अंतिम अवतार का नाम है। इसका काारण कल्की पुराण 2/28 श्लोक में कहा गया है कि कलियुग का कल्कि (अधर्म/पापों) का विनाश करके सत्य धर्म संस्थापन करने वाला है। अतः कल्की एक गुण् वाचक नाम है, जो कि वह ईशदूत समझा जाता है जिनके द्वारा कलियुग का शेषांश में अधर्म को मिटाकर सत्य धर्म संस्थापन होगा।
वेद संहिता में नराशंस नाम का उल्लेख है। जिसका अर्थ प्रशंसित नर (मनुष्य) है।
वैसे ही हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम के नाम में महम्मद शब्द भी गुणवाचक शब्द है। अरबी भाषा के अनुसार हम्द शब्द से महम्मद शब्द बना है। हम्द का अर्थ प्रशंसित है। नामगत साम्य के साथ और भी एक समानता है कि कल्कि भी अंतिम अवतार है, महम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम भी अंतिम पैगम्बर या अंतिम सन्देश वाहक हैं।
2. स्थान गत साम्य: अंतिम अवतार नराशंस कल्की का अविर्भाव पृथ्वी के दक्षिण ओर किसी जल (समुद्र) के समीप रेगिस्तानी भू-भाग में होने की कही गयी है, वेदानुसार यहां पर ऊंट का प्रयोग अधिक मात्रा में होगा। हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम जल के समीप रेगिस्तानी भूभाग अरब देश के मक्का में पैदा हुए थे। यहां पर ऊंट का प्रयोग अधिक है।
3. काल/समय: वर्णन के अनुसार कल्की अवतार का उस समय अविर्भाव होगा जब युद्ध में सवारी घोड़े एवं अस्त्रा में ढाल-तलवार आदि का प्रयोग होता था अथवा भागवत पुराण के अनुसार कलियुग कुछ बीत जाने पर (12/2/16 श्लोः) कल्की अवतार का समय है। इस हिसाब से आज से प्राय 1400 साल पहले युद्ध में तलवार आदि अस्त्रा एवं घोड़े आदि का प्रयोग होता था। वही कल्की अवतार का समय है। हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम उसी ढाल-तलवार से युद्ध करने के जमाने में ही पैदा हुए थे।
4. माता-पिता का परिचय में साम्य: वेद संहिता में तो इसका उल्लेख नहीं है लेकिन पुराणों में पिता विष्णुयश एवं माता सुमती कहा गया है। विष्णु यश-इसका अरबी में बदल दिया जाये तो विष्णु-अल्लाह, यश-प्रशंसा करने वाला भक्त अर्थात अरबी में बंदा कहा जाता है, इस प्रकार अल्लाह का बंदा-अब्दुल्लाह, माता-सुमति-सुंदर शांति मनवाली स्त्री, अरबी में आमिना कहा जाता है। हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम की मा-बाप का नाम वही था पिता अब्दुल्ला एवं माता का नाम आमिना था।
5. श्रेष्ठ ब्राहमण वंश में जन्म होना - हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम अरब देश के मक्का शहर में कुरैश वंश हाशिम गोत्रा में जन्मे इस वंश के दायित्व मक्का को प्रधान उपासना गृह काबा के पुरोहित थे। यह सभी वर्णन हजरत महम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम पर सत्यापित होता है।
6. अंतिम अवतार 8 गुणों युक्त होंगे - जैसा कि 1. प्रज्ञा, 2. कुलिनता, 3. इंद्रिय दमन, 4. श्रुति ज्ञान, 5. पराक्रम 6. कम बोलना, 7. दान करना, 8. कृतज्ञता।
प्रज्ञा: परोक्षा ज्ञान, वह ज्ञान मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम का एक महान गुण था, इसी कारण भूत-भविष्य वर्तमान को बताते थे। प्रमाण 627 ई. में युद्ध में रूमियों के विजयी होने की बात मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम न 9 वर्ष पहले बता दी थी।
कुलीनता: मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम ऐसे कुलीन थे कि उस समय मक्का के कुरैश गोत्रा के हाशिम वंश में जन्म हुआ था। जिसे उनका गोत्रा को अरब में सर्वश्रेष्ठ माना जाता था।
इंद्रिय दमन: मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम के विषय में सम्पूर्ण इस्लामी इतिहास तथा अन्य धर्म के विद्वानों का कथन है कि इंद्रिय-दमन उनका एक महान गुण था।
श्रुत: ईश्वर द्वारा सुनाया गया एवं ऋषि/अवतार द्वारा सुना गया हो उसी को श्रुत कहा जाता है जिस कारण ‘ईशवाणी’ की और एक नाम ‘श्रुति’ है। हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम में यह गुण होने का प्रमाण कुरआन मजीद नाम के ईश्वरीय ग्रन्थ है जो कि देवता (फरिश्ता) द्वारा सुनाया गया एवं मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम द्वारा सुना गया। यह ही अंतिम ईश ग्रंथ है।
पराक्रम: वीरता, महम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम उस समय एक ऐसे वीर थे, जिन्होंने पहलवान रूकाना को दो बार परास्त किया, इस कारण कोई भी वीर मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम का सामना करने का साहस नहीं रखता था।
कम बोलना: सम्पूर्ण इस्लामी इतिहास में यह प्रमाण है कि मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम अधिकतर मौन रहा करते थे जब बोलते तो कम शब्दों में ही सबको प्रभावित कर लेते।
दान करना: दान करना धर्म का एक महत्वपूर्ण अंग है एवं सर्ववादि द्वारा सम्मत है। हजरत महम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम ऐसे दानी थे, कि उनके घर में गरीब दुखियों की भीड़ लगी रहती थी।
कृतज्ञता - अपने साथी किये गये उपकार को नहीं भूलना। मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम की कृतज्ञता को कोई भी इतिहास कार अस्वीकार नहीं कर सकता। सर्वप्रथम साथ देने वाले 313 साथी एवं सबसे पहले सहायता करने वाले अंसार के विषय में कहे गये वाक्य ही प्रमाण देंगे।
9. शरीर में सुगंध निकलना: भागवत पुराण के अनुसार कल्की अवतार के शरीर से सुगंध निकलने का वर्णन मिलता है। वह बात हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम पर ही घटित होती है। मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम के शरीर की सुगंध तो प्रसिद्ध है। (भागवत पुराण - 12/2/21 शिमाएल त्रिमिजी - अनुवाद मो. जकरिया पृ. 208)
10. देवदत्त घोड़े पर सवार होना : भागवत और कल्की पुराण में देवता से दिये गये घोड़े पर सवार होने का वर्णन मिलता है। इसके साथ वेद संहिता में भी देव अश्व उचैः श्रवा पर सवार होने का उल्लेख है। जगत के मंगल के लिए उस घोड़े पर सवार होकर अंतिम अवतार ईश्वर के पास गये थे। हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम के पास देवदत्त अश्व (बुर्राक) भेजकर ईश्वर ने अपने पास बुलाया था। (स्पमि व िडनींउउंक इल ैपत ॅपससपंउ डनसतण्च्ण्125)
11. युद्ध में देवों द्वारा अंतिम अवतार का सहायता प्राप्त होना और युद्ध विजित करना (कल्की पु.-2/7 एवं अथर्व संहिता 20/128/12 मंत्रा) इसी वर्णन के अनुसार महम्मद (सल्ल.) की सहायता के लिये युद्ध में फरिश्तों ने उनकी सहायता की थी। उसी युद्ध के पश्चात इस्लाम तेज गति से बढ़ना आरम्भ हुआ। (सूरा-आल इमरान - 123-125 आ)
वेद संहिता से प्राप्त विषय:
12. ऊंट सवारी होना - मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम ऊंट की सवारी पसंद करते थे। ऊंट पर होना होकर मक्का से मदीना गये थे।
13. 12 वुधुओं वाला बताया गया - अथर्व वेद संहिता 20/127/2 मंत्रा में अंतिम अवतार का 12 पत्नियों का उल्लेख है। हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम की 12 पत्नियां थी। जैसे - निम्न प्रकार कहा गया -
1. हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम का पत्नी खदीजा (राः) खुवैलिद की पुत्री थी।
2. हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम की पत्नी सौदः (राः) जमअः की पुत्री थी।
3. हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम की पत्नी आएशा (राः) अबूबक्र की पुत्री थी।
4. हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम की पत्नी हफसा (राः) उमर की पुत्री थी।
5. हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम की पत्नी जैनब (राः) खजोम की पुत्री थी।
6. हजरत मुहम्मद (सल्ल.) की पत्नी उम्मे सलमा (राः) अवी उमय्या की पुत्री थी।
7. हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम की पत्नी जैनब (राः) जहरा की पुत्री थी।
8. हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम की पत्नी जुवैरिया (राः) हारिस की पुत्री थी।
9. हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम की पत्नी रैहाना (राः) शमगन की पुत्री थी।
10. हजरत मुहम्मद (सल्ल.) की पत्नी उम्मे हबीबा (राः) अबू सुफियान की पुत्री थी।
11. हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम की पत्नी सफिया (राः) हययी की पुत्री थी।
12. हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम की पत्नी मैमूना (राः) हारिस की पुत्री थी।
12 पत्नी वाली बात भी मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम पर ही घटित होती है।
14. 10 मालायें - 10 अतिप्रिय साथी जैसा -
1. अबू बक्र बिन अबू कहाफा, 2. उमर बिन खत्ताब
3. उस्मान बिन अफफान 4. अली बिन आबूतालिब
5. तलहा बिना अब्दुल्लाह 6. जुबैर बिना अव्वाम
7. सअद बिन अबू वक्कास 8. सई बिन जैद
9. अब्दुर्रहमान बिन औफ 10. अबू उबैदह बिन जर्राह
15. 100 निष्क: अर्थात 100 महाज्ञानी अनुयायी है। वह 100 महाज्ञानी मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम के साथ ही थे। जिसको असहाबे-सुफ्फा कहा जाता है उन्होंने लोगों को सदा धर्म की शिक्षा दी, जिसका सत्य धर्म अंतिम अवतार ने स्थापना की।
16. 300 अवर्ण: अर्थात अग्रगामी साथी, अंतिम अवतार का पहला साथ देगा, मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम के पहले साथियों की संख्या 313 थी, जो न तो 300 है और न 400 है, जब अधर्मियों से पहला मुकाबिला हुआ उस समय 313 साथी युद्ध के मैदान में निकल आये थे।
17. 10000 गौ. अर्थात 10000 ब्रह्मज्ञानी, हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम के साथ मक्का विजय के दिन 10,000 साथी थे। जो कि सब के सब ब्रह्म/ईश ज्ञान युक्त महाज्ञानी थे।
वेद-पुराणों में जिसकी अंतिम अवतार के रूप में भविष्य वाणी की है। अब वह भविष्य नहीं रहा। वह अतीत का विषय हो चुका है। अधिकांश मनुष्य जिस नराशंस की प्रतीक्षा कर रहे हैं वह अंतिम अवतार अरब देश के मक्का नगर में आविर्भूत होकर अपना कार्य सम्पूर्ण करके चले गये। मानने वाले पर आदेश है कि समग्र मानव समाज का यह समचार/सन्देश पहुंचा दिया जाये कि अंतिम अवतार हो चुके एवं अपना कार्य पूरा करके चले गये।
उपसंहार
प्रत्येक मनुष्य का मूल लक्ष्य है कि ईश्वर की कृपा से इहलोक एवं परलोक में सुख शांति, खुशी मिले, ईश्वर पर भक्ति-विश्वास रखने वाले को चाहिए कि सम्पूर्ण धर्म-विश्वास-भक्ति द्वारा ईश्वर को प्रसन्न करें। अब सवाल है सम्पूर्ण धर्मविश्वास-भक्ति क्या है।
अर्थात: सृष्टि के प्रारम्भ से आखिर तक ईश्वर द्वारा किये गये आदेश पर विश्वास रखना, उनके भेजे गये अवतारों को अवतार ही समझना, जब-जब जैसा हकुम दिया ऐसे ही जिन्देगी को व्यतीत करना। ईश्वर के बहुत अवतार है, अगर कुछ को मानें और कुछ की न मानें तो यह ईश्वर पर विश्वास एवं भक्ति में असम्पूर्णता (कमी) है। जान बूझ कर ऐसा न करना चाहिए। ईश्वर ने जो आदेश दिया है, वह सीधा प्रत्येक मनुष्य के पास नहीं पहुंचता है। ईश्वर का आदेश (हुकुम) किसी माध्यम से मनुष्यों के पास भेजा जाता है। उसी माध्यम को ही देवदूत/अवतार/नबी (रसूल)/सन्देष्टा आदि कहा जाता है। अवतार को इसलिए भेजा जाता है कि हम सब संकीर्ण बुद्धि स्वार्थी मानसिकता से प्रभावित होकर, ईश्वर आदेश को भूल गये या फिर मनमानी अर्थ निकाल कर चल रहे, इसको सम्पूर्ण धर्म भक्ति समझते हैं। ऐसी अवस्था से निकलवाकर हम सब को सत्य धर्म को समझाते और ईश्वर की आदेश के अनुसार जिन्दगी चलाने का उपदेश करते। मनुष्यों कलि (शयतान) के बहकावे में आकर धर्म से अधर्म को ओर मन बना लेते, अतः ईश्वर ने अवतार भेजा कर सत्य धर्म मार्ग दिखाता।
यह सिलसिला तो अंतिम अवतार आने सेपहले बहुत बार-बार चला, लेकिन वह अवतार एक सीमित स्थान के लिए होता था।
सब जो अंतिम अवतार का आविर्भाव हुआ था। यह कोई सीमित स्थान के लिए नहीं, वह तो समग्र जगत के मंगल के लिए भेजा गया था। क्योंकि इसे बाद और कोई अवतार का आविर्भाव नहीं होगा, अंतिम अवतार ही अंतिम है। अगर आप अभी भी यह सोचते रहे कि अंतिम अवतार तो भविष्य है तो यह धारणा ठीक नहीं। क्योंकि अंतिम अवतार भविष्य नहीं, अतीत का विषय हो गया। युद्ध में ढाल-तलवार का युग नहीं है। अगर आप ऐसा सोचते हैं कि अंतिम अवतार का भारत में आविर्भाव होगा तो तो यह भी ठीक नहीं है। क्योंकि अंतिम अवतार समग्र जगत के मंगल करने के लिए अवतरित होता है, इसलिए समग्र जगत के किसी भी स्थान पर आ सकते हैं, भारत के जो निर्दिष्ट अवतार थे वह अवश्य भारत में आये थे. ऐसा भी जरूरी नहीं कि अंतिम अवतार की भाषा संस्कृत हो, सृष्टिकर्ता ने समग्र सृष्टि जगत को बनाया। समग्र प्राणी मनुष्य आदि सृष्टिकर्ता ही की सृष्टि है। भाषा भी सृष्टिकर्ता ही की सृष्टि है।
ऐसा न सोचा जाये कि जब अवतार नया है, तो धर्म कुछ नया होगा, यह ठीक नहीं, कि धर्म के नया-पुराना होता नहीं। सत्य सनातन धर्म सृष्टि के आरम्भ से आज तक चला आ रहा है। प्रत्येक अवतार उसी सत्य सनातन धर्म को ही पुनः संस्थापन करता था। केवल अपनी संकीर्ण बुद्धि स्वार्थ और शैतान के चक्कर में हम लोगों ने जो बिगाड़ आया उसे पवित्रा करके (शुद्ध करके) उसी पुराने धर्म की ही स्थापना करना अवतार का कार्य है।
आदि मनु (स्वयम्भु) से जलप्रावन मनु (वैवस्वत) तक 6 मनु का समय निकल जाने के बाद सप्तम मनु हुए। (श्रविष्णुपुराण-3/1/6-7 श्लोः) मनु वैवस्वत का एक प्रार्थना मंत्रा पाये जाते हैं, जिसमें कहा गया है कि आदि मनु अवतार से दिय गये मागे (धर्म) से हमें भ्रष्ट न करे। (ऋ 8/30/3)
यह धारणा भी ठीक नहीं है कि नया अवतार नया धर्म लेकर आता है।
अंतिम अवतार का नाम नराशंस है, अरबी भाषा में महम्मद है। अंतिम अवतार द्वारा संस्थापित किया गया धर्म का नाम इस्लाम है। हिन्दी भाषा में सनातन धर्म अर्थात चिरन्तन सत्य धर्म है। वही सत्य सनातन धर्म सृष्टि के आरम्भ से आज तक विभिन्न नामें से चला आ रहा है।
वह सनातन धर्म भक्त प्रहलाद द्वारा जब प्रतिष्ठित हुआ तब एकेश्वर वैष्णव धर्म नाम में हुआ था
तब एकेश्वर भागवत धर्म नाम में हुआ था। वही सनातन धर्म अब इस्लाम नाम में प्रतिष्ठित है। इसमें केवल भाषा (जबान) का ही अंतर है।
अगर हम अंतिम अवतार का अनुसंधान न करें तो ईश्वर ने उनके माध्यम से जो आदेश उपदेश एवं धार्मिक संस्कार किया, उसका लाभ हमें नहीं हो पायेगा।
अतः जीन्देगी में ईश्वर में दिया गया सम्पूर्ण आदेश का पालन नहीं होता है। जिस कारण मेरा विश्वास सम्पूर्ण नहीं है। सम्पूर्ण विश्वास भक्ति ईश्वर के पास मान्य है। अंश विश्वास/आंशिक धर्म मान्य नहीं। क्योंकि जब से अंतिम अवतार के पास ईश्वर की ओर से ईशवाणी आना शुरू हुई उसी दिन से धर्म/विश्वास/सम्पूर्ण होने लगा, जब अंतिम अवतार का कार्य सम्पूर्ण हो गया तो उनके द्वारा कहा गया उपदेश/आदेश मानकर ही धर्म/विश्वास सम्पूर्ण होगा। अंतिम अवतार से पहले जितने अवतार आये थे वह समग्र विश्व के अवतार नहीं थे। सीमित क्षेत्रा के लिए आये थे।
अतः समग्र विश्व का मंगल करने वाला अंतिम अवतार समग्र विश्व मानव के लिए मान्य है। ईश्वर/परब्रह्म की प्रसन्नता चाहिए तो परब्रह्म से दिया गया समस्त असमानी ग्रथ (ईश्वाणी) पर विश्वास रखने के साथ समग्र अवतार पर विश्वास रखना है।
यह संदेश प्रत्येक अवतार देता है। क्योंकि पूर्व धर्म में अधर्म घुस गया, जिस लिये अवतार भेज कर शुद्ध पवित्रा सत्य धर्म में अधर्म घुस गया, जिस लिये अवतार भेज कर शुद्ध पवित्रा सत्य धर्म को संस्थापन किया जाता है।
परम करूणा मय ईश्वर (सृष्टिकर्ता) हम सब को सत्य समझने की सदबुद्धि दान करें, हम सभी को शांति सुख तथा अंत में मुक्ति (मोक्ष) दान करें।
"कल्कि अवतार" अथवा "नराशंस" जिनके सम्बन्ध में हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों ने भविष्यवाणी की है वह मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम ही हैं। क्योंकि कुछ स्थानों पर स्पष्ट रूप में "मुहम्मद" और "अहमद" का वर्णन भी आया है।
देखिए भविष्य पुराण ( 323:5:8)
" एक दूसरे देश में एक आचार्य अपने मित्रों के साथ आएगा उनका नाम महामद होगा। वे रेगिस्तानी क्षेत्र में आएगा।"
श्रीमदभग्वत पुराण : उसी प्रकार श्रीमदभग्वत पुराण (72-2) में शब्द "मुहम्मद" इस प्रकार आया है:
अज्ञान हेतु कृतमोहमदान्धकार नाशं विधायं हित हो दयते विवेक
"मुहम्मद के द्वारा अंधकार दूर होगा और ज्ञान तथा आध्यात्मिकता का प्रचनल होगा।"
यजुर्वेद (18-31) में है:
वेदाहमेत पुरुष महान्तमादित्तयवर्ण तमसः प्रस्तावयनाय
" वेद अहमद महान व्यक्ति हैं, यूर्य के समान अंधेरे को समाप्त करने वाले, उन्हीं को जान कर प्रलोक में सफल हुआ जा सकता है। उसके अतिरिक्त सफलता तक पहंचने रा कोई दूसरा मार्ग नहीं।"
इति अल्लोपनिषद में अल्लाह और मुहम्मद का वर्णन:
आदल्ला बूक मेककम्। अल्लबूक निखादकम् ।। 4 ।।अलो यज्ञेन हुत हुत्वा अल्ला सूय्र्य चन्द्र सर्वनक्षत्राः ।। 5 ।।अल्लो ऋषीणां सर्व दिव्यां इन्द्राय पूर्व माया परमन्तरिक्षा ।। 6 ।।अल्लः पृथिव्या अन्तरिक्ष्ज्ञं विश्वरूपम् ।। 7 ।।इल्लांकबर इल्लांकबर इल्लां इल्लल्लेति इल्लल्लाः ।। 8 ।।ओम् अल्ला इल्लल्ला अनादि स्वरूपाय अथर्वण श्यामा हुद्दी जनान पशून सिद्धांतजलवरान् अदृष्टं कुरु कुरु फट ।। 9 ।।असुरसंहारिणी हृं द्दीं अल्लो रसूल महमदरकबरस्य अल्लो अल्लाम्इल्लल्लेति इल्लल्ला ।। 10 ।।इति अल्लोपनिषद
अर्थात् ‘‘अल्लाह ने सब ऋषि भेजे और चंद्रमा, सूर्य एवं तारों को पैदा किया। उसी ने सारे ऋषि भेजे और आकाश को पैदा किया। अल्लाह ने ब्रह्माण्ड (ज़मीन और आकाश) को बनाया। अल्लाह श्रेष्ठ है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह सारे विश्व का पालनहार है। वह तमाम बुराइयों और मुसीबतों को दूर करने वाला है। मुहम्मद अल्लाह के रसूल (संदेष्टा) हैं, जो इस संसार का पालनहार है। अतः घोषणा करो कि अल्लाह एक है और उसके सिवा कोई पूज्य नहीं।’’
गौतम बुद्धजी की भविष्यवाणियाँ
आने वाले बुद्ध की विशेषताएँ
ह. मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम और अन्तिम बुद्ध तुलनात्मक दृष्टि से
वह जगत को सत्य और परोपकार की शिक्षा देगा
अन्तिम ईशदूत जगत नायक होगा
वह जगत को जीवन का ऐसा मार्ग दिखाएगा जो सत्य त्था पूर्ण होगा
वह अपने समय पर आएगा
उसका हृदय शुद्ध होगा तथा वह ज्ञान और बुद्धि से सम्पन्न होगा
महात्मा बुद्ध ने बताया कि अन्तिम बुद्ध का नाम मैत्रेय होगा
अन्तिम सन्देष्टा की भविष्यवाणियाँ तौरेत के पन्नों में
उनके (अर्थात इसराईलियों के) भाइयों के बीच में होगा
शब्द महामदेय की व्याख्या
तेरे (अर्थात मूसा अ. के) समान एक नबी आएगा
हज़रत मूसा (अ.) और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम में समानता
बाबा गुरू नानक जी के अनुसार हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम
''पहला नाम खुदा का दूजा नाम रसूल
तीजा कलमा पढ़ नानका दरगे पावें क़बूल
डेहता नूरे मुहम्मदी डेहता नबीं रसूल
नानक कुदरत देख कर खुदी गई सब भूल''
यहूदियों और ईसाइयों के ग्रंथों में मुहम्मद
तेरा परमेश्वर यहोवा तेरे मध्य से, अर्थात तेरे भाइयों में से मेरे समान (अर्थात मूसा अ. के) समान एक नबी आएगा
एक नबी को उत्पन्न करेगा, तू उसी की सुनना
सो मैं उनके लिये उनके भाइयों के बीच में से तेरे समान एक नबी को उत्पन्न करूंगा, और अपना वचन उसके मुंह में डालूंगा। और जिस जिस बात की मैं उसे आज्ञा दूंगा वही वह उनको कह सुनाएगा।
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http://antimawtar.blogspot.com/2009_08_01_archive.html
http://antimawtar.blogspot.com/2009_10_01_archive.html
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