Thursday, March 21, 2013

हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) का संक्षिप्त परिचय.

हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) का संक्षिप्त परिचय. 
--------------------------------------------------------------

सऊदी अरब के मक्का शहर में आज से करीब 1434 साल पहले हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) दुनिया में आये. आपके दुनिया में आने से पहले ही आपके पिता का इन्तेकाल हो गया था. जब 7 साल के थे तब माँ का भी इन्तेकाल हो गया फिर आपको आपके दादा और चाचाओ ने पाला. 

बचपन से ही आप बहुत न
रम दिल थे, आपने कभी झूट नहीं बोला, कभी किसी से झगडा नहीं किया यानी कभी भी कोई बुरा काम नहीं किया. जब आप 25 साल के हुए तब आपकी शादी एक विधवा हजरते खदीजा (रदी अल्लाहु अन्हु) से हो गई. जो उस समय 40 साल की थीं.

हजरत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) 40 साल के हुए. उन्होंने अरब के वातावरण में चालीस वर्ष तक शराब को मुंह तक न लगाया था हालांकि शराब पीना अरबों की आदत थी किसी पराई महिला की ओर आँख तक न उठाई थी जबकि अरब व्यभिचार के रसिया होते थे, चालीस वर्ष की आयु में अल्लाह ने उनको संदेष्टा (नबी/ईशदूत) बनाया. इससे पहले सारे लोग उनको अमानतदार और सच्चा के नाम से पुकारते थे। उनके पास अपनी कीमती चीज़ रखा करते थे. उनकी हर बात पर भरोसा करते थे क्योंकि उन्होंने कभी झूट नहीं बोला था.

आपने लोगों को हर बुराई से रोका। जुआ, शराब, व्यभिचार, और बेहयाई से मना किया। उच्च आचरण और नैतिकता की शिक्षा दी, एक ईश्वर का संदेश दिया. सज्जन लोगों ने आपका अनुसरण किया और एक ईश्वर के नियम…ानुसार जीवन बिताने लगे। परन्तु जाति वाले जो विभिन्न बुराइयों में ग्रस्त थे, स्वयं अपने ही जैसे लोगों की पूजा करते थे और ईश्वर को भूल चुके थे. जब आपने उनको बुराइयों से रोका तो सब आपका विरोध करने लगे। वहां के लोगो चाहते थे की एक ईश्वर की पूजा की बात न की जाए और मक्का के सरदारों को डर था की हमारी सरदारी न चली जाए. इसके लिए सबसे पहले मक्का शहर के सरदारों ने आपको कहा के आप जितना चाहो उतना पैसा ले लो और अगर चाहो तो हम आपको सरदार भी बना देते हैं, लेकिन जो काम कर रहे हो वो छोड़ दो. मगर आपको न पैसे की लालच थी और न ही सरदारी की इसलिए आपने ऐसा करने से मना कर दिया. इसके बाद सब मक्का शहर के लोग आपके पीछे पड़ गए आपको गालियाँ दी, पत्थर मारा, रास्ते में काँटे बिछाए और तरह-तरह की तकलीफ दी. हालाकि आपकी शिक्षा एक सभ्य समाज बनाने और एक ईश्वर को पूजने की थी.

कुछ लोग मुस्लमान हुए. बाद में इन सब पर एक दो दिन नहीं बल्कि निरंतर 13 वर्ष तक भयानक यातनायें दी, यहाँ तक कि आपको और आपके अनुयाइयों को जन्म-भूमी से भी निकाला, अपने घर-बार धन-सम्पत्ती छोड़ कर मदीना चले गए, और उन पर आपके शुत्रुओं ने कब्ज़ा कर लिया था लेकिन मदीना पहुँचने के पश्चात भी शत्रुओं ने आपको और आपके साथियों को शान्ति से रहने न दिया। उनकी शत्रुता में कोई कमी न आई। आठ वर्ष तक आपसे लड़ाई ठाने रहे पर आप और आपके अनुयाइयों नें उन सब कष्टों को सहन किया

फिर 21 वर्ष के बाद एक दिन वह भी आया कि आप के अनुयाइयों की संख्या दस हज़ार तक पहुंच चुकी थी और आप वह जन्म-भूमि (मक्का) जिस से आपको निकाल दिया गयाथा उस पर विजय पा चुके थे। प्रत्येक विरोधी और शुत्रु आपके कबजे में थे, यदि आप चाहते तो हर एक से बदला ले सकते थे और 21 वर्ष तक जो उन्हें चैन की साँस लेने नहीं देते थे सब का सफाया कर सकते थे लेकिन आपको तो अल्लाह ने मानवता के लिए दयालुता बना कर भेजा था। ऐसा आदेश देते तो कैसे ? उनका उद्देश्य तो पूरे जगत का कल्याण था इस लिए आपने लोगों की क्षमा का एलान कर दिया।

इस सार्वजनिक क्षमा करने का उन शत्रुओं के दिलो पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि मक्का विजय के समय आपके अनुयाइयों की संख्या मात्र दस हज़ार थी जब कि दो वर्ष के पश्चात अन्तिम हज के अवसर पर आपके अनुयाइयों की संख्या डेढ़ लाख हो गई थी. मक्का पर विजय पाने के बाद भी आप मक्का में नहीं रुके बल्कि मदीना वापस आ गए. इतना सब होने के बाद भी आपका एक छोटा और सादा घर था, कई बार ऐसा भी होता था की आप 2 टाइम का खाना नहीं खा पाते थे. क्योंकि घर में कुछ खाने के लिए नहीं होता था. अगर आप चाहते तो अच्छे से अच्छा खा सकते थे और महल बना कर रह सकते थे, लेकिन आपने कभी दुनिया की ज़िन्दगी को अहमियत नहीं दी, बल्कि खुद भूखे रहे और दुसरो को खाना खिलाया. यही शिक्षा उन्होंने अपने अनुययियो को भी दी. मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलय्ही वसल्लम) 63 साल की उम्र में दुनिया से पर्दा किया.

No comments:

Post a Comment