इस्लामी इतिहास
कुरआन मजीद इतने उच्चकोटि की वाणी है कि उसे जो सुनता लहालोट हो जाता। हजरत मुहम्मद (सल्ल0) कुरआन पढ़कर लोगो को सुनाते, जो पढ़े-लिखे और समझदार थे वे इस पर र्इमान लाते कि यह र्इशग्रन्थ हैं। इस प्रकार कुरआन के माननेवालों की संख्या बढ़ने लगी और दुश्मनोंकी परेशानी बढ़ने लगी।जो इस पर र्इमान लाता उसको मारा-पीटा जाता, किसी के पैर मे रस्सी बॉधकर घसीटा जाता, किसी को जलती हुर्इ रेत पर लिटाकर उपर से भारी पत्थर रख दिया जाता, किसी को उलटा लटकाकर नीचे से धूनी दी जाती। फिर भी ये र्इमान लानेवाले पलटने को तैयार नही थे। जब लोगो ने देखा कि र्इमान लानेवालों की संख्या बढ़ती ही जा रही हैं तो तय किया गया कि मुहम्मद (सल्ल0) ही को कत्ल कर दिया जाए। र्इश्वर ने मुहम्मद (सल्ल0) को आदेश दिया किरातो-रात मदीना चले जाओ, वहां के लोग अच्छे हैं और बहुत-से लोग इस किताब पर र्इमान ला चुके हैं। अत: मुहम्मद (सल्ल0) मदीना हिजरत कर गए जो मुसलमान जहां-जहां थे, धीरे-धीरे मदीना पहुचने लगे। इस प्रकारकुरआन मजीद पर र्इमान लानेावालों का एक गिरोह मदीना में बन गया। इस पर विरोधी बहुत चिन्तित हुए और इस छोटे-से गिरोह को खत्म करने के लिए उन्होने कर्इ बार आक्रमण किए, मगर हर बार पराजित हुए। इस प्रकारबद्र, उहद, हुनैन इत्यादि स्थानों पर युद्ध हुआ, पर हर जगह र्इमान लानेवाले सफल रहे और अरब मे इस कुरआन के आधार पर एक छोटी-सी इस्लामी हुकूमत बन गर्इ। वह अरब जहां कोर्इ हुकूमत ही न थी, दिन-दहाड़े काफिलें लूट लिए जाते और बस्तियों के लोग रातभरडर के मारे सो भी नही पाते कि डाकुओं को कोर्इ गिरोह रात को उनके घर पर आक्रमण करके लूट ले और मर्दो और औरतों को बाजार में ले जाकर बेच दे। यह थी अरब के लोगो की दुर्दशा। परन्तु जब इस्लामी स्टेट स्थापित हुर्इ तो वहांऐसा अमन हुआ कि एक बुढ़िया सोना उछालते हुए ‘सनाआ’ से ‘हजरे-मौत’तक सैकड़ो मील की तन्हा रेगिस्तानी यात्रा करती है। रास्ते मे उसको कोर्इ भय नही होता। यह दशा देखकर लोग बड़ी संख्यामे र्इमान लाने लगे और पूरे अरब मे इस्लामी हुकूमत स्थापित हो गर्इ।
मुहम्मद (सल्ल0) की मृत्यु के पश्चात उनकेचार खुलफा 1. हजरत अबूबक्र (रजि0)
2. हजरत उमर (रजि0), 3. हजरत उस्मान (रजि0) और 4.हजरत अली (रजि0) ने उस वक्त की सभ्य दुनिया के बहुत बड़े क्षेत्र पर इस्लामी हुकूमत कायम कर दी।
No comments:
Post a Comment